सफलता व्यवसायिक लक्ष्य निर्धारित करने के लिए कुछ सुझाव
यह अवश्य ही ध्यान देना चाहिए कि व्यवसायिक लक्ष्य की प्राप्ति के लिए उसे छोटे-छोटे भाग या माडयूल, जिसको निश्चित तथा कम से कम समय में प्राप्त किया जा सके, में अवश्य ही विभाजित किया जाना चाहिए। प्रत्येक माडयूल या भाग को अलग-अलग तरीके से पूर्ण या प्राप्त किया जाता है, और इसे उद्देश्य की प्राप्ति कहते है। प्रत्येक उद्देश्य की सफलता ही लक्ष्य की सफलता होती है। अतः सभी उद्देश्यों की सफलता का योग ही लक्ष्य की पूर्ण सफलता का द्योतक है। यहाँ पर लक्ष्य और उद्देश्य का विवरण अलग-अलग नहीं किया जा रहा है जो सुझाव लक्ष्य को सफलतापूर्वक निर्धारणा के लिए नीचे दिए जा रहे है वह उद्देश्य निर्धारणा के लिए भी उपयोगी है अतः सफलतापूर्वक लक्ष्य निर्धारणा के लिए कुछ सुझाव नीचे दिए गए है-
1. लक्ष्य का एक विशिष्ट या निश्चित कथन सृजन करना: अपने लक्ष्य को एक वाक्य में स्पष्ट रूप से लिखना और उसे विशिष्ट प्रकार से प्रदर्शित करना। प्रतिदिन इस पर देखते हुए इसे याद अवश्य करना। यह अवश्य सुनिश्चित करे कि यह कथन सभी उद्देश्य को सामूहिक रूप से इसमें समाहित करे जिन्हें व्यवसायिक लक्ष्य की प्राप्ति के लिए पूर्ण करना अति आवश्यक होता है प्रतिदिन कम से कम गम्भीरता के साथ एक कदम लक्ष्य प्राप्ति की तरफ अवश्य बढ़ाया जाए।
2. स्मार्ट उद्देश्य का निर्धारणा करना और स्वयं भी स्मार्ट बनाना: स्मार्ट उद्देश्य एक छोटा उद्देश्य है जो मुख्य लक्ष्य की प्राप्ति की तरह एक कदम है अपनी गुणवान पर ध्यान रखते हुए जो कुछ भी व्यक्ति अच्छी तरह कर सकता है लक्ष्य प्राप्ति के लिए उसे करना चाहिए। इससे व्यक्ति भी और अधिक स्मार्ट हो जाता है। अत्यधिक स्मार्ट व्यक्ति गुणवान पर केंद्रीत करता है और एक निश्चित अवधि में लक्ष्य प्राप्त करने की कोशिश करता है।
स्मार्ट लक्ष्य का निर्धारणा ही स्मार्ट उद्देश्य है-
1. निश्चित या विशिष्ट: लक्ष्य स्पष्ट रूप से परिभाषित और दुविधा रहित हो।
2. मापने योग्य है: किसी विशिष्ट मानक या मानदण्ड के सापेक्ष इसका मापन करना सम्भव है।
3. वास्तविक: जीवन के उद्देश्य की पूर्ति करे और प्राप्ति की सीमा में हो।
4. प्राप्त करने योग्य: असम्भव नहीं यद्यपि प्राप्त करना कठिन होना चाहिए।
5. समयबद्ध हो: दिनांक के साथ स्पष्ट रूप से कार्य के शुरू करने और समापन का समय निश्चित हो।
3. सफलता की सीढ़ी को पहचानता और उस पर चढ़ना: उचित दिशा, पहल और तरीके को अपनाकर उचित प्रकार से कार्य शुरू करना और बिना रुके आगे बढ़ते रहना चाहिए। समय की बर्बादी बचाने के लिए परामर्शदाता, विशेषज्ञ और अनुभवी सलाहकार की सहायता अवश्य लेना।
4. अपनी समग्र विशेषता का विवरण बनाना: दूसरे के भविष्य क्रियान्वयन को दृष्टिगत करते हुए अपनी दक्षता या ज्ञान की विशेषता का संक्षिप्त विवरण अवश्य तैयार रखना। इस संक्षिप्त विवरण में कार्य का अनुभव, शैक्षणिक योग्यता और दक्षता का सटीक एवं संक्षिप्त विवरण होता है। समग्र विशेषताएं इससे परिलक्षित होना चाहिए, लेकिन यह सरल भाषा में होना चाहिए।
5. छोटे-छोटे उद्देश्य निर्धारित करना और प्राप्त करना: व्यवसायिक लक्ष्य प्राप्त करने के लिए छोटे-छोटे उद्देश्य निर्धारित करना चाहिए और अपने संसाधनों से इसे प्राप्त करने की कोशिश करना चाहिए। इससे आत्मविश्वास और कार्य शक्ति में वृद्धि होती है।
6. कार्यों को सूचीबद्ध करके वरीयताक्रम बनाना: अपनी सूची को तकनीक के माध्यम से डिजिटल रूप देकर अपने सभी कार्यों की सूची और उनके करने के वरीयता क्रम को पूर्णरूप से अपने कार्य क्षेत्र में रखना। इससे समय प्रबंधन में भी सहायता मिलता है। एक व्यापक कार्य योजना बनाना और किसी डिजिटल एप्लीकेशन के माध्यम से इसे उचित प्रकार से संचालित करना। यह एप्लीकेशन कार्य पर बने रहने के लिए समय-समय पर आवश्यक याद दिलाता रहता है।
7. मासिक प्रोत्साहन का अभ्यास करना: हतोत्साहित होने से बचने के लिए मासिक धैर्य और दृढ़ता का अभ्यास करना चाहिए। जीवन में कभी न कभी निराशा का भाव आना स्वाभाविक है और यह जीवन का एक अंग है और यह व्यक्ति के व्यक्तिगत व व्यवसायिक लक्ष्य पर प्रभाव डालता है। जब कार्य विधीया अपने अनुकूल न हो और विकट परिवेश बन रहा हो तो उस समय यदि आप सकारात्मक रहने की कोशिश करेंगे तो यह आत्मविश्वास को बढ़ावा देगा। इसके लिए मानसिक अभ्यास करना जरूरी होता है।
8. सकारात्मक सोचना और सकारात्मक करके लक्ष्य प्राप्त करना: सकारात्मक सोच और पूर्वकार्य करने की प्रवृत्ती तथा बोलने से सकारात्मक कार्य प्रक्रिया का विकास होता है। जब कभी अपने व्यवसायिक लक्ष्य के विषय में सोचें तो सकारात्मक ही सोचें जो मस्तिष्क को सकारात्मक कार्य करने को प्रेरित करता है, और कार्य करने के लिए तैयार भी करता है। यह सोच कार्य में सकारात्मक गति प्रदान करने की कोशिश करता है। जब कोई भी कार्य सकारात्मक सोच और विचार के साथ शुरू किया जाता है, तो उसमें सफलता अवश्य मिलती है।
9. एक व्यवसायिक सम्पर्क तंत्र का विकास करना: इस प्रकार के व्यक्ति जो तुम्हारे विचार, उद्देश्य और उत्साह से सहमत तो उनके साथ एक सामाजिक तंत्र बनाना। इसके लिए अपने-अपने कार्यक्षेत्र से बाहर के व्यक्तियों का भी चयन कर सकते हैं, जिससे अलग प्रकार के भाव और सोच की प्राप्ति होती है। यह व्यवसायिक समाज तंत्र उस चयनित आधार पर चढ़ने में सहायता करता है जो उद्देश्य प्राप्ति के लिए अति आवश्यक होता है। बोलने से ज्यादा सुनना चाहिए और दूसरों की सहायता करने की कोशिश हमेशा करनी चाहिए।
10. अपने प्रतियोगियों की शक्ति पहचानना: एक शिक्षक के रूप में अपने वरिष्ठ शिक्षक को अपना प्रतिस्पधरीय बनाना तथा शिक्षण कार्य में उससे अधिक प्रवीणता और प्रभावशीलता प्राप्त करने की कोशिश करना। अपने वरिष्ठों का आंकलन करके यह जानने की कोशिश करना कि उन्होंने आज के स्तर तक पहुंचने के लिए क्या-क्या किया है और उन विशेष योग्यता को प्रतिस्पधारा के भाव से (ईर्ष्या से नहीं) अपने अन्दर जागृत करने की सतत कोशिश करना चाहिए।
11. अपने लिए पहचान बनाने की कोशिश करना: व्यवसायिक लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए स्वयं के लिए प्रतिष्ठा और पहचान बनाने की कोशिश अपनी मेहनत से हमेशा करते रहना। अपने सामाजिक मंच पर कोई भी अतर्कसंगत सूचना नहीं डालना जिसके लिए बाद में क्षमा मांगना पड़े। लक्ष्य प्राप्ति की प्रक्रिया में गलतियाँ होना स्वाभाविक है, लेकिन तुरन्त उसका पता लगाकर उसे अवश्य दूर करना यह दर्शाता है कि व्यक्ति कार्य को सफलतापूर्वक समाप्त करने के लिए प्रयासरत है। यदि किसी समय कोई उद्देश्य निर्धारित करते है तो यह अवश्य सोचना चाहिए कि यह किस प्रकार व्यवसायिक लक्ष्य प्राप्ति में सहायक होगा।
12. समय प्रबंधन: प्रत्येक उद्देश्य की पूर्ति के लिए एक निश्चित समय का निर्धारण करना और जब उस उद्देश्य की पूर्ति के लिए कार्य कर रहे हो, तो अपने समय को प्रभावशाली तरीके से सोच समझकर उपयोग करना चाहिए। यह कार्य में पूर्ण तल्लीन होने की प्रक्रिया है क्योंकि उद्देश्य प्राप्ति के लिए अति आवश्यक हैकि उस कार्य पर पूर्ण रूप से केंद्रीत करना तथा अच्छी प्रकार से करने की कोशिश करते रहना।
13. दूसरों से सहयोग लेना: यह अवश्य अवलोकन करिये कि सफलतम उद्यमी या व्यवसायी क्या करते है उनके कार्य करने की प्रवृत्ती को पहचानना तथा उसे अपने विचारों में समावेश करके उद्देश्य प्राप्त की कोशिश करना। इससे नए विचार और अभिधारणा का सृजन हो सकता है।
14. अपने मनोभावों को व्यवहारिकता के साथ जोड़ना: यह आशा नहीं करना चाहिए कि सभी कार्य व्यक्ति की योजना के अनुसार सम्पन्न होगा। इस अवस्था में सोचना, पुनः सोचना और अपने मनोभावों को वास्तविक परिवेश से जोड़ने की कोशिश करना। उबा देने वाले, एक तरह के कार्य तथा पुनरावृत्ती आदि तरह के कार्य इस सोच से करते रहना कि उद्देश्य प्राप्ति के लिए इन्हें करना अति आवश्यक है। यह हमेश ध्यान में रखना चाहिए कि मैंने एक संकल्प लिया है और उसे पूरा करना है, अतः कोशिश करना कि मेरा मस्तिष्क मेरे दिया का अनुसरण अवश्य करे।
15. कार्य को तुरन्त करना: यदि व्यक्ति अपना निर्धारित उद्देश्य प्राप्त करना चाहता है तो उसे उचित समय या शुभ मुर्हूत की प्रतीक्षा नहीं करना चाहिए, उसे तुरन्त कार्य शुरू कर देना चाहिए लेकिन कार्य की दिशा उचित होनी चाहिए और इसका तरीका तथा कार्य की पहल भी उचित हो। व्यवहारिक कार्य करके अपने सपनों को वास्तविकता में बदलने की कोशिश करना।
16. संसाधनों का सम्पूर्ण उपयोग करना: व्यवसायिक लक्ष्य प्राप्त करना तभी सम्भव होता है जब सभी उपलब्ध संसाधनों का उचित और अधिकतम उपयोग किया जाता है। अपनी इच्छा से संसाधनों का उपयोग करके अनेक प्रकार की सम्भावित बाधाओं को दूर किया जाता है।संसाधन जो भी उपलब्ध है उससे ही कार्य शुरू कर देना, प्रतीक्षा नहीं करना और फिर कार्य पूर्ण करने के लिए अतिरिक्त आवश्यक संसाधनों की माग करना।
17. एस०डब्ल्यू०ओ०टी० आंकलन: यह एक महत्वपूर्ण व्यवसायिक औजार है जो व्यक्ति की शक्ति और कमजोरियों को पहचानता है। अपने शक्ति केंद्रीत पर कार्य करने का दायित्व देकर दूसरों की सहायता से कमजोरियों को दूर करने की कोशिश करना। यदि कोई कार्य स्वयं की अनुकूलता के अनुसार नहीं हो तो बिना किसी संकोच के विशेषज्ञ की सहायता अवश्य लेना।
18. अपनी प्रगति का नियमित अन्तराल पर मापन करना: व्यवसायिक लक्ष्य निर्धारण करने के बाद समय-समय पर निश्चित अन्तराल में कार्य की प्रगति का मापन करके यह जानता कि कितना कार्य हो गया है तथा कितना बाकी है। इससे अपने आरामदायक परिवेश से बाहर आकर अधिक कार्य करने की प्रेरणा मिलती है।
19. निरन्तरता और दृढ़ता अवश्य बनाए रखना: अपनी कार्य सूची और समय सीमा के अनुसार कार्य पूर्ण करने की कोशिश करना, यह चुनौती पूर्ण होता है लेकिन उत्पादकता बनाए रखने के लिए तथा निरन्तर लक्ष्य प्राप्ति हेतु यह अति प्रभावशाली कार्य नीति है। इससे शीघ्र ही यह विश्वास हो जाता है कि यदि व्यक्ति निरन्तरता और दृढ़ता के साथ कार्य करता है तो सफलता प्राप्त करना सम्भव हो जाता है।
20. दीर्घकालीन और लघुकालीन दोनों लक्ष्य अवश्य हो: यह अवश्य याद रखना चाहिए कि लघु अवधीय लक्ष्य उद्देश्य होता है जिसकी प्राप्ति से दीर्घ लक्ष्य आधारित व्यवसायिक लक्ष्य प्राप्त करना सम्भव हो जाता है। इससे दोनों प्रकार के लक्ष्य को निर्धारित करने में तर्कसंगत समय निर्धारण में सहायता मिलती है।
21. अपनी शक्ति और समर्थ पर विश्वास रखना: सकारात्मक रहते हुए यह सोचना कि मेरे अन्दर सामर्थ्ये है और मैं लक्ष्य को प्राप्त कर सकता हूँ। कोशिश करना कि आवेशनात्मक बुद्धि मस्तिष्क/मन को कार्य पर हमेशा केंद्रीत रखे। चाहे कितनी भी बाधाएं आए प्रयत्न करते रहना चाहिए और अन्त में सफलता अवश्य मिलेगी।
22. ऐसा लक्ष्य निर्धारित करना जो प्रेरित करे: सफलता पाने के लिए प्रेरणा अति आवश्यक अवयव है अपने जीवन की उच्च प्राथमिकता के आधार पर लक्ष्य निर्धारित करना। लक्ष्य प्राप्ति के लिए संकल्प करना आवश्यक होता है। जब लक्ष्य प्राप्ति के लिए अति आवश्यक मन से उत्पन्न होती है तो वह कार्य करने के लिए प्रेरणा का सृजन करती है।
23. व्यवसायिक लक्ष्य प्राप्ति से जीवन उद्देश्य पूर्ण हो जाता है: व्यवसायिक लक्ष्य जीवन के सभी क्षेत्रों से सम्बन्धित होना चाहिए जिससे यह व्यक्ति को प्रोत्साहित करता रहे तथा प्राप्ति के लिए आवश्यक आन्तरिक प्रेरणा स्वतः उत्पन्न हो सके। यह लक्ष्य जीवन पर्यन्त का लक्ष्य, निश्चित पद प्राप्ति, आर्थिक लाभ,शैक्षणिक उन्नयन, पारिवारिक सम्बंधो को दृढ़ करना, कलात्मक विशेषज्ञता प्राप्त करना, सकारात्मक दृष्टिकोण का विकास होना, शारीरिक स्वास्थ्य या लोक सेवा की प्रवृत्ती आदि में कुछ या अनेक हो सकता है। यदि व्यवसायिक लक्ष्य और जीवन लक्ष्य में समरूपता हो तो व्यक्ति लक्ष्य प्राप्ति में अतिरिक्त रुचि लेता है।
24. अपेक्षाओं की स्पष्टता: व्यवसायिक लक्ष्य निर्धारण के बाद यह अवश्य ही स्पष्ट हो जाना चाहिए, कि इससे अपेक्षाएँ क्या है। अर्थात कोई सीखने वाला या व्यक्ति जो इस लक्ष्य को प्राप्ति करने की कोशिश कर रहा है, उसे इसके सफलता पर क्या मिलेगा, यह पता होना चाहिए। अत्यधिक या कम अपेक्षाएं दुविधा और संदेह उत्पन्न करती है और प्राप्ति के संकल्प को कम कर देती है।
25. प्राथमिकता निर्धारित करना: यदि एक से अधिक व्यवसायिक लक्ष्य हो तो कार्य करने की प्राथमिकता निर्धारणा करना अति आवश्यक होता है। अतः मन में योजना कि उसके पास इतने व्यवसायिक लक्ष्य हैं, अवश्य उत्पन्न हो जाती है, जो कार्य में बाधक होती है। प्राथमिकता का निर्धारणा इस योजना को समाप्त करता है और ध्यान तथा रुचि को क्रम में सबसे पर स्थित लक्ष्य को प्राप्त करने में केंद्रीत कर देता है।
26. उचित योजना: उचित योजना कार्य कुशलता की कमियों को दूर कर देता है व्यवसायिक लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए जितने सम्भावित मापदण्ड सम्मलित हो, सबको ध्यान में रखकर ही योजना बनाना चाहिए। उत्तम शुरुआत के लिए उचित योजना सबसे महत्वपूर्ण अंग है। यह उचित ही कहा गया है कि अच्छी शुरुआत, आधा कार्य समाप्ति का सूचक है।