व्यक्तिगत विकास
व्यक्तिगत विकास वह प्रक्रिया या क्रियाकलाप है, जिससे स्वयं की जागरूकता, पहचान, क्षमता, बौद्धिक योग्यता, आदत, ज्ञान, सामाजिक और व्यक्तिगत विशेषताओं का निर्माण होता है, जिससे किसी संस्थान/प्रतिष्ठान में नौकरी पाने और उसे बनाए रखने तथा जीवन की गुणवान में सुधार करने में सहायता मिलती है। जीवन की गुणवान, सन्तुष्टि, वैभव, सुरक्षा, स्वतन्त्रता और विश्वास पर निर्भर करता है और इससे देखे गए स्वप्न और अपेक्षाओं की पूर्ति में सहायता मिलती है।
व्यक्तिगत विकास जीवन पर्यन्त विकास की प्रक्रिया है यह केवल कुछ महत्वपूर्ण दायित्वों को प्राप्त करने जैसे शिक्षक, सुझावदाता, परामर्शदाता, सलाहकार, नेता, प्रबंधक या प्रशासक बनाने तक ही सीमित नहीं है।
दूसरों के साथ परस्पर सम्वाद की प्रक्रिया तथा जीवन में सफलता और खुशहाली, व्यक्तिगत विकास का ही परिणाम है। जैसे पौधों के उचित विकास के लिए जल, खाद एवं अन्य अवयवों की आवश्यकता होती है, उसी प्रकार एक आदर्श व्यक्ति के विकास के लिए व्यक्तिगत विकास एक आवश्यक उपकरण है। यदि एक व्यक्ति प्रगति नहीं कर रहा है या सम्बंधो को नहीं बनाता है या बनाने के साथ उसे बनाए नहीं रखता है तो वह जीवन में विकास नहीं कर रहा है। सभी को यह अवश्य सोचना चाहिए कि प्रतिदिन हम कितना समय अपनी आदत, व्यवहार, दृष्टिकोण व्यक्तित्व या चरित्र को सुधारने में व्यतीत करते है अतः व्यक्तिगत विकास जीवन का वह पाठ है जिसे उचित प्रकार से पढ़ने की जरूरत है और उसी प्रकार उसे अपनाने की आवश्यकता है।
किसी व्यक्ति द्वारा जीवन में जिन समस्याओं का सामना करना पड़ता है, उसका समाधान ही व्यक्तित्व विकास की प्रक्रिया है। यह प्रगति का सकारात्मक तरीका है और अपनी वास्तविक यथार्थता का सम्मान करना है|विश्व के अधिकतर सफलतम व्यक्ति हमेशा अपने मानवीय मूल्य, दूरदृष्टि और प्राप्ति को आदर्श मानवीय पहलूओं के सापेक्ष आंकलन करने के लिए कुछ समय अवश्य देते है। व्यक्तिगत विकास के सम्बन्ध में कुछ आवश्यक तथ्य जिन्हें उचित प्रकार समझने की जरूरत है निम्नवत दिए गए है-
1. स्वयं के जीवन को उच्चतम बनाने के लिए स्वयं के चरित्र की विशेषताओं का ज्यादा से ज्यादा अध्ययन करने की कोशिश करना। कोई व्यक्ति जीवन में कोई कार्य क्यों करता है इसका उत्तर है कि वह अपने व्यक्तिगत जीवन की चार आवश्यकताओं जैसे निश्चितता, भिन्नताएं, महत्व या पहचान तथा अपनत्व और प्यार तथा दो आध्यात्मिक आवश्यकता जैसे संकल्प और साधना के विकास तथा पूर्ति के लिए करता है। विकास करने का केवल एक ही माध्यम है कि हम अपने चरित्र का निर्माण करें।
2. जीवन में कुछ भी करने का कोई न कोई कारण अवश्य होता है। आवश्यकता जब उत्पन्न होती है तो वह कार्य करने के लिए प्रेरित करती है और एक ही कार्य को बार-बार करने से आदत का विकास होता है। व्यक्तिगत विकास का महत्वपूर्ण अंग है कि हम अपनी नकारात्मक आदतों से छुटकारा अवश्य प्राप्त करें।
3. समस्याएं जीवन का अंग होती है अतः उनके उचित समाधान का तरीका और साधन अवश्य ढूढ़ना चाहिए। व्यक्तिगत विकास और आत्मावलोकन से प्रत्येक समस्या का समाधान अवश्य मिल जाता है। स्वयं का विकास, व्यक्ति के जीवन के अनेक पहलुओं का सचेतता के साथ सुधार है। स्वयं विकास का मुख्य अंग स्वयं के व्यक्तिगत जीवन का उचित विकास है, जिससे सभी आवश्यकताओं और चाहतों की उचित पूर्ति हो सके।
4. स्वयं के विकास के तीन प्रमुख भाग होते है-
1. दक्षता में वृद्धि।
2. मासिक अनुकूलन।
3. आदत का सृजन या निर्माण।
दक्षता वृद्धि में व्यक्तिगत दक्षता और परस्पर दक्षता है जो सम्बन्ध बनाने, सम्प्रेषण में सुधार करने, उचित लक्ष्य निर्धारण,समुचित समस्या समाधान, व्यवस्थित समय प्रबंधन और उचित तनाव सम्बन्ध आदि पर केंद्रीत होता है। मासिक संतुलन,मासिक निर्माण और सुदृढ़ीकरण की प्रक्रिया है जो लक्ष्य निर्धारण, सकारात्मक छवि बनाने तथा आत्मविश्वास बढ़ाने का कार्य करता है। आत्म-सम्मान की सुरक्षा सुनिश्चित प्रक्रिया है, यह हमारे क्रिया, प्रतिक्रिया, निर्णय और सोच को निर्देशित करता है।
4. स्वयं विकास की प्रक्रिया स्वयं जागरूकता और स्वयं खोज की शुरुआत है, इसके लिए सर्वप्रथम अपने वर्तमान स्थित या स्तर का पता लगाना होता है। स्वयं की खोज व्यक्ति को उसके व्यक्तित्व, मानवीय मूल्य, प्रवृद्धि और विश्वास के वास्तविक स्वरूप से परिचय कराती है। यह व्यक्ति को यह भी बताती है कि उसकी इच्छा किस प्रकार का व्यक्ति बनने की है। अब वास्तविक विकास प्रक्रिया दक्षता, बुद्धिमत्ता, योग्यता, क्षमता और कार्यकुशलता का आंकलन करने से शुरू होती है। स्वयं जागरूकता या स्वयं विकास साधारण रूप से केवल जानने की प्रक्रिया है, लेकिन स्वयं आंकलन स्वयं विकास योजना के लिए विचार प्रस्तुत करता है जिसका व्यक्ति अनुसरण करना चाहता है। यह उसके सभी संसाधनों को व्यवस्थित करके आवश्यक ज्ञान और विशिष्ट दक्षता प्राप्त करने को बाध्य करता है जिससे व्यक्ति अत्यधिक व्यस्थित और प्रभावशाली होकर प्रवीणता प्राप्त कर लेता है। इससे व्यक्तिगत योग्यता, क्षमता तथा कार्यकुशलता में सुधार होता है। कार्यकुशलता में वृद्धि होने से आत्मविश्वास और प्राप्तिसम्भावनाओं में वृद्धि होती है। आत्मविश्वास की वृद्धि से व्यक्ति जीवन में खुशहाली और प्राप्ति से संतुष्टि का अनुभव करता है। यह स्वयं प्राप्ति तथा पूर्ण क्षमता का बोध कराके उद्देश्य प्राप्ति के लिए प्रेरित करता है।