जीवन पर्यन्त सीखने और सतत सीखने मे अंतर
सतत सीखना और जीवन पर्यन्त सीखना प्रायः एक समान संदर्भ में उपयोग किए जाते है लेकिन प्रसंगों के आधार पर इनमें थोड़ा अन्तर होता है। जिसका विवरण निम्न है-
1. जीवन पर्यन्त सीखना विशेष रूप से व्यक्ति के सीखने से सम्बन्धित होती है। यह व्यक्ति के स्वयं संकल्प से सम्बन्धित होता है जो यह निर्धारित करता है कि प्रतिदिन एक नियमित समय तक नए ज्ञान और दक्षता को प्राप्त करने के लिए अवश्य पढ़ना या सीखना है। अतः जीवन पर्यन्त सीखने वाला नियमित सीख को अपने जीवन शैली में समाहित कर लेता है, जैसे कोई व्यक्ति प्रतिदिन एक घण्टा नियमित रूप से बिना रुके अपने व्यक्तिगत सुधार और विकास के लिए अवश्य ही पढ़ता या लिखता है। जीवन पर्यन्त सुधार के लिए नियमित रूप से पूरे जीवन भर सीखने का संकल्प व्यक्तिगत होता है। इसलिए इसे जीवन पर्यन्त सीखना कहते है।
2. सतत सीखना भी व्यक्ति के संकल्प को दर्शाता है, जो वह नए ज्ञान और दक्षता की प्राप्ति हेतु एक निश्चित समय तक सीखने के लिए लेता है यह औपचारिक या अस्थाई प्रसंग के परिपेक्ष में प्रायः उपयोग किया जाता है। इसका उदाहरण नौकरी प्राप्ति के इच्छुक व्यक्ति है जो किसी डिग्री या डिप्लोमा पाठ्यक्रम में प्रवेश लेता है और लगातार नियमित रूप से प्रतिदिन तीन या चार तक सीखने या पढ़ने का संकल्प लेता है। डिग्री या डिप्लोमा का प्रमाणपत्र प्राप्त करके नौकरी प्राप्त कर लेता है। अब यह जरूरी नहीं है कि वह उसी प्रकार सीखता रहेगा। कोई कर्मचारी पदोन्नति के लिए किसी विशेष पाठ्यक्रम में प्रवेश लेता है जिसकी अवधि एक महीने से लेकर अधिकतम एक वर्ष तक होती है। इस अवधि में वह नियमित रूप से सीखता है जो सतत सीख के अंतर्गत आता है। अतः सतत सीखना एक अस्थाई संकल्प किसी विशेष उद्देश्य की पूर्ति के लिए किया जाता है जबकि जीवन पर्यन्त सीख पूरे जीवन के लिए स्वयं सुधार हेतु होता है।