व्यवसायिक विकास योजना
व्यवसायिक विकास योजना दक्षता, ज्ञान, योग्यता और अन्य विशेषताओं का लिखित अभिलेख है जिसकी आवश्यकता किसी व्यक्ति द्वारा आजीविका या जीवन में व्यवसायिक लक्ष्य प्राप्त करने के लिए होती है। व्यवसायिक विकास किसी भी व्यवसाय की आजीविका से जुड़ा होता है, जैसे शिक्षण या उद्योग प्रबंधन या नेतृत्व क्षमता। इस व्यवसायिक विकास में सभी आवश्यक अवयवों का संग्रह होता है, जिसमें योग्यता भी सम्मिलित होती है जो एक व्यवसायिक शिक्षक बनने के लिए जरूरी है। यदि व्यक्ति अपने जीवन की योजना का निर्माण स्वयं नहीं करता है तो यह सम्भावनाएं होती है कि वह किसी दूसरे की जीवन योजना को अपना लेता है और यह अवश्य ही उसके लिए नहीं बना होता है।
व्यवसायिक विकास योजना सभी कार्यों की यह सूची होती है, जिसे व्यक्ति को अपने व्यवसायिक लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए अवश्य ही करना पड़ता है। यह जीविका की आकांक्षाओं के सम्बन्ध में गहन सूचना प्राप्त करने में सहायता करता है। व्यवसायिक विकास योजना एक सतत संदर्भ है और किसी विशेष लक्ष्य को प्राप्त कर लेने पर इसमें उसी के अनुरूप परिवर्तन करने की आवश्यकता होती है। नियमित रूप से व्यवसायिक विकास योजना में सुधार करने से यह व्यक्ति को व्यवसायिक रूप से सफल बनाने में सहायता करता है।
व्यवसायिक विकास योजना को किस प्रकार लिखना होता है।
उचित व्यवसायिक विकास योजना लिखने का क्रम निम्नवत है-
1. स्वयं का आंकलन या मूल्याकंन: व्यक्ति को स्वयं के व्यवसायिक ज्ञान, दक्षता और रुचि के मूल्यांकन या आंकलन करने की आवश्यकता होती है। व्यवसायिक लक्ष्य के सापेक्ष यह वर्तमान के संचित योग्यता,क्षमता, रुचि, ज्ञान और दक्षता का परीक्षण करने का अवसर देता हैउसके साथ सम्प्रेषण दक्षता, समूह में कार्य करने की क्षमता तथा नेतृत्व क्षमता भी सम्मिलित होती है। अब उस क्षेत्र की पहचान करने कीआवश्यकता है, जहाँ पर सुधार की जरूरत होती है।
2. लक्ष्य का निर्धारण: अपने व्यवसायिक विकास योजना में स्मार्ट लक्ष्य अवश्य निर्धारित होना चाहिए। इससे लक्ष्य का पता लगाने और आवश्यकतानुसार उसमें नवीनीकरण या सुधर करना सम्भव हो जाता है लक्ष्य को छोटे-छोटे भागों में बांँटना तथा एक निश्चित सीमा में उसे पूरा करना सम्भव करना। फिर इसमें प्राथमिकता तय करके सबसे महत्वपूर्ण कार्य को सबसे पहले करना शुरू करना। लक्ष्य लघु अवधीय (एक साल या कम अवधि का), मध्य अवधीय (दो वर्ष की अवधि का) या दीर्घ अवधीय (तीन से पाँच साल की अवधि) होना चाहिए।
3. कार्य योजना: व्यवसायिक विकास योजना में निर्धारित लक्ष्य को प्राप्त करने में, कार्य योजना एक सुनिश्चित कार्य नीति प्रस्तुत करता है। अपनी क्षमता और सीखने की शैली का आंकलन करके व्यक्ति स्वयं सीखना, प्रयोग करके सीखना, दूसरों के मार्ग दर्शन में सीखना, ऑनलाइन सीखना, सलाह या परामर्श द्वारा सीखना आदि में से किसी उपयुक्त तरीके का चुनाव करता है जो उसकी कार्य योजना की पूर्ति करे।यह व्यक्ति के चुने गए लक्ष्य पर भी निर्भर करता है। दक्षता का प्रकार जो व्यक्ति आवश्यकता के अनुसार प्राप्त करना चाहता है निम्न विकल्प पर विचार किया जा सकता है-
1. यदि लक्ष्य जीविका में परिवर्तन से सम्बन्धित है तब योग्यता और प्रमाण-पत्र की आवश्यकता होती है जिससे नई जीविका की शुरुआत किया जा सके। अतः इस पर विचार करने की आवश्यकता है। यदि उसी संस्थान में प्रगति करना है तो कार्य नीति की योजना उसी के अनुसार बनानी होती है।
2. यदि सलाह की आवश्यकता है तो विशेषज्ञ, व्यवसायिक सलाहकार या परामर्शदाता से सम्पर्क किया जाता है।
3. यदि दक्षता बढ़ाने की आवश्यकता हो तो उस क्षेत्र के वरिष्ठ शिक्षकों और विशेषज्ञों से सम्पर्क करना होता है।
4. उपयुक्त संसाधनों की उपलब्धता: संसाधनों की आवश्यकता व्यवसायिक प्रगति के लिए अति आवश्यक होता है। यह कार्यशाला के माध्यम से या समाज तंत्र के द्वारा प्राप्त किया जाता है। कुछ व्यवसायिक संसाधनों का विवरण निम्नवत है-
1. शैक्षणिक संस्थान: संस्थान जो दीर्घकालीन और लुघकालीन पाठ्यकृम नियमित रूप से चलाते है, यह अनेक प्रकार के कार्यशाला और कांग्रेस का आयोजन करके दक्षता आधारित विषय पर सूचना भी प्रदान करते हैं।
2. खुला या दूरस्थ सीखना: अनेक विश्वविद्यालय/कालेज, कौशल आधरित कोर्सेस दूरस्थ सीखने की प्रक्रिया से चलाते है।
3. इ-सीखना: आजकल आन लाइन सीखना बहुत ही लोकप्रिय होता जा रहा है।
4. सामाजिक मीडिया मंच के द्वारा दक्षता विशिष्ट जानकारी प्रदान की जाती है, इसके लिए व्यक्ति को व्यवसायिक तथा सामाजिक तंत्र का सदस्य बनना आवश्यक होता है।
5. वेबीनार: कुछ विशेषज्ञ शिक्षण का दक्षता, मूल्यांकन या उद्योगों के प्रचलन पर वेबीनार आयोजित करते है,आवश्यक ज्ञान और दक्षता को बढ़ाने के लिए भी इस प्रकार के वेबीनार ज्यादा उपयोगी होते है।
6. समय सीमा: व्यवसायिक विकास योजना एक सतत अभ्यास की प्रक्रिया है। इसमें बदलते समय के साथ परिवर्तन करते रहने की आवश्यकता होती है, जिससे यह सटीकता के साथ दशाए कि व्यक्ति अपने व्यवसाय में आज किस स्थिति में है। इसमें किसी कार्य को सफलतापूर्वक करने पर परिवर्तन किया जाता है तथा यदि कार्य नीति उद्देश्य या लक्ष्य में परिवर्तन होता है तो भी व्यवसायिक विकास योजना में उसी के अनुसार परिवर्तन किया जाता है।